आपके शहर को बदलने वाला सामंजस्य: वास्तुकला और सार्वजनिक स्थान डिज़ाइन के बेहतरीन टिप्स

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건축 설계와 공공 공간 디자인의 조화 - **Vibrant Community Park in a Thriving Indian City**
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नमस्ते दोस्तों! आप सभी कैसे हैं? मुझे उम्मीद है कि आप सब बढ़िया होंगे और अपनी ज़िंदगी को एक खुशनुमा अंदाज़ में जी रहे होंगे। मैं, आपका अपना पसंदीदा ब्लॉगर, आज फिर हाज़िर हूँ एक ऐसे विषय के साथ, जो हम सबकी ज़िंदगी से जुड़ा है। हम सब रोज़ाना किसी न किसी इमारत से गुज़रते हैं, किसी पार्क में टहलते हैं, या शहर की सड़कों पर चलते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि ये इमारतें, ये सड़कें, ये खुले सार्वजनिक स्थान हमारी ज़िंदगी को कितना प्रभावित करते हैं?

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मैं अपने अनुभव से कहूँ तो, एक अच्छा डिज़ाइन किया गया शहर या एक खूबसूरत सार्वजनिक जगह हमारे मूड को पूरी तरह बदल सकती है। आजकल के भागदौड़ भरे जीवन में, जब शहरों का विस्तार तेज़ी से हो रहा है और आबादी भी बढ़ रही है, तब इस बात पर ज़ोर देना बहुत ज़रूरी हो गया है कि हम सिर्फ़ इमारतें न बनाएँ, बल्कि ऐसी जगहें बनाएँ जहाँ लोग सुकून से रह सकें, आपस में मिल सकें और ज़िंदगी का पूरा लुत्फ़ उठा सकें। (Source: 10)आज के समय में वास्तुकला सिर्फ़ ईंट-पत्थर का खेल नहीं रह गई है, बल्कि यह इंसानों की ज़रूरतों और भावनाओं को समझने का एक कलात्मक तरीका बन गई है। (Source: 14) अब आर्किटेक्ट और शहरी योजनाकार सिर्फ़ बिल्डिंग की खूबसूरती पर ही नहीं, बल्कि इस बात पर भी ध्यान दे रहे हैं कि कैसे हमारे सार्वजनिक स्थान समुदायों को एक साथ ला सकते हैं, उन्हें सुरक्षित महसूस करा सकते हैं और हरियाली से भरे वातावरण दे सकते हैं। (Source: 10, 14, 18) आपने देखा होगा कि कैसे कुछ शहर हमें तुरंत अपने लगते हैं, और कुछ से हम जल्द से जल्द बाहर निकलना चाहते हैं। यही तो है डिज़ाइन का जादू!

(Source: 10) स्मार्ट सिटीज़ (Source: 4, 6, 8) से लेकर पर्यावरण-अनुकूल इमारतों (Source: 13, 14) तक, हमारे रहने के तरीकों में बड़े बदलाव आ रहे हैं और भविष्य में भी ये बदलाव जारी रहेंगे। यह सिर्फ़ बिल्डिंग बनाने की बात नहीं है, यह उन जगहों को बनाने की बात है जहाँ ज़िंदगी साँस लेती है, जहाँ रिश्ते बनते हैं, और जहाँ हम सब मिलकर एक बेहतर कल बना सकते हैं।आइए, इस रोमांचक सफ़र में मेरे साथ चलें और जानें कि वास्तुकला और सार्वजनिक स्थान डिज़ाइन का यह सामंजस्य हमारी ज़िंदगी को कैसे और भी ख़ास बना सकता है!

इसके बारे में सटीक जानकारी प्राप्त करते हैं।

शहरों का दिल: सार्वजनिक स्थानों की अहमियत

अक्सर हम अपने आस-पास के पार्कों, चौराहों, बाज़ारों और खुले मैदानों को बस ऐसे ही देखते हैं, बिना सोचे कि ये हमारी ज़िंदगी में कितना बड़ा रोल निभाते हैं। मेरे दोस्तो, सच कहूँ तो, ये सार्वजनिक स्थान किसी भी शहर की धड़कन होते हैं। ये वो जगहें हैं जहाँ हम मिलते हैं, हँसते हैं, बातें करते हैं और कभी-कभी बस सुकून के दो पल बिताते हैं। मुझे आज भी याद है, जब मैं छोटा था, हमारे मोहल्ले का पार्क ही हमारी पूरी दुनिया हुआ करता था। वहाँ पर हम क्रिकेट खेलते थे, कहानियाँ सुनते थे और नए दोस्त बनाते थे। आज जब मैं बड़े शहरों में जाता हूँ, तो देखता हूँ कि कैसे वेल-डिज़ाइन किए गए सार्वजनिक स्थान लोगों को करीब लाते हैं। ये सिर्फ़ खाली ज़मीन के टुकड़े नहीं होते, बल्कि ये ऐसे सोशल हब होते हैं जहाँ पर अलग-अलग सोच के लोग एक साथ आते हैं। मुझे लगता है कि एक शहर की असली पहचान उसकी गगनचुंबी इमारतों से नहीं, बल्कि उसके उन सार्वजनिक स्थानों से होती है, जहाँ लोग खुलकर ज़िंदगी जीते हैं। जब एक जगह पर हरियाली होती है, बैठने के लिए बेंच होती हैं, और सुरक्षा का अहसास होता है, तो वहाँ अपने आप लोगों की भीड़ जुट जाती है। ये सिर्फ़ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक जुड़ाव के लिए भी बहुत ज़रूरी हैं। हमें इन जगहों को सिर्फ़ बनाना नहीं है, बल्कि उन्हें लगातार बेहतर बनाना है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इनमें खुलकर साँस ले सकें। मैं तो यही कहूँगा कि अगर आप किसी शहर को समझना चाहते हैं, तो उसके पार्कों और चौराहों पर कुछ देर बैठिए, आपको अपने आप सब समझ आ जाएगा।

कम्युनिटी के लिए मिलते-जुलते केंद्र

सार्वजनिक स्थान सिर्फ़ घूमने-फिरने की जगहें नहीं होते, बल्कि ये समुदाय को मज़बूत करने के केंद्र भी होते हैं। कल्पना कीजिए एक ऐसे पार्क की जहाँ हर शाम बच्चे खेलते हैं, बड़े टहलते हैं और बूढ़े एक-दूसरे से बातें करते हैं। यह एक ऐसी जगह है जहाँ अजनबी भी एक-दूसरे से घुल-मिल जाते हैं। मेरे अनुभव से, जब सार्वजनिक स्थान अच्छी तरह से बनाए जाते हैं, तो वहाँ लोग खुद-ब-खुद एक-दूसरे के करीब आने लगते हैं। यह सामाजिक ताने-बाने को बुनने का काम करते हैं, जहाँ लोग अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं और एक-दूसरे के प्रति सम्मान विकसित करते हैं। मुझे याद है एक बार मैं एक छोटे से गाँव में गया था जहाँ एक बरगद के पेड़ के नीचे एक चबूतरा बना था। वह चबूतरा पूरे गाँव का मीटिंग पॉइंट था, जहाँ सारे फ़ैसले होते थे और सभी खुशियाँ और दुख बाँटे जाते थे। यही तो असली कम्युनिटी की पहचान है, और ऐसे केंद्र शहरों में भी होने चाहिए।

शहरों की साँसें: हरियाली और खुलापन

शहरों में अक्सर कंक्रीट के जंगल दिखाई देते हैं, जहाँ हरियाली की कमी खलती है। लेकिन, मुझे लगता है कि हरियाली और खुले स्थान किसी भी शहर की जान होते हैं। ये हमें ताज़ी हवा देते हैं, प्रदूषण कम करते हैं और हमारे मूड को बेहतर बनाते हैं। जब आप सुबह-सुबह किसी पार्क में टहलते हैं, तो आपको एक अलग ही ऊर्जा मिलती है। पक्षियों की चहचहाहट और पेड़ों की हरियाली दिमाग को शांत करती है। मेरे एक दोस्त ने एक बार कहा था कि एक शहर उतना ही स्वस्थ है जितनी उसकी हरियाली। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ। अच्छे डिज़ाइन वाले सार्वजनिक स्थान इन हरे-भरे हिस्सों को शहर के ताने-बाने में खूबसूरती से गूंथ देते हैं, जिससे शहरी जीवन थोड़ा और सहनीय और आनंददायक बन जाता है। हमें समझना होगा कि ये सिर्फ़ पेड़-पौधे नहीं, बल्कि हमारे फेफड़े और आत्मा की शांति का स्रोत हैं।

डिजाइन का जादू: हमारी ज़िंदगी पर गहरा असर

क्या आपने कभी सोचा है कि कैसे एक अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई जगह में घुसते ही आपका मूड बदल जाता है? और वहीं, एक बेतरतीब या बदसूरत जगह में आपको घुटन महसूस होने लगती है? दोस्तों, यही तो डिज़ाइन का जादू है! वास्तुकला और सार्वजनिक स्थानों का डिज़ाइन सिर्फ़ ईंटों और पत्थरों को सही जगह पर रखने का काम नहीं है, बल्कि यह हमारी भावनाओं, व्यवहार और हमारी ज़िंदगी के अनुभव को आकार देने का एक शक्तिशाली माध्यम है। मैंने खुद महसूस किया है कि जब मैं किसी खूबसूरत जगह पर होता हूँ, तो मेरा मन शांत और रचनात्मक हो जाता है, जबकि किसी गंदी या अव्यवस्थित जगह पर मेरा मन अशांत और चिड़चिड़ा हो जाता है। यह सिर्फ़ इमारतों की बाहरी दिखावट की बात नहीं है, बल्कि उस जगह के अंदरूनी एहसास की बात है। उदाहरण के लिए, एक अच्छी रोशनी वाली सड़क पर चलना हमें सुरक्षित महसूस कराता है, जबकि अंधेरी और संकरी गलियाँ हमें असुरक्षित महसूस करा सकती हैं। यह डिज़ाइन ही है जो हमें बताता है कि कहाँ हमें रुकना चाहिए, कहाँ हमें चलना चाहिए, और कहाँ हमें आराम करना चाहिए। यह हमारे रोज़मर्रा के जीवन में इतनी गहराई तक जुड़ा हुआ है कि अक्सर हम इसे नोटिस भी नहीं करते। मेरा मानना है कि अच्छे डिज़ाइन का मतलब सिर्फ़ सुंदरता नहीं है, बल्कि यह कार्यक्षमता, सुरक्षा और मानवीय अनुभवों को बेहतर बनाना भी है। एक वास्तुकार या शहरी योजनाकार सिर्फ़ बिल्डिंग नहीं बनाता, वह लोगों के जीवन के लिए एक स्टेज तैयार करता है, जहाँ अनगिनत कहानियाँ रोज़ बुनी जाती हैं।

भावनात्मक जुड़ाव और प्रेरणा

जब हम किसी ऐतिहासिक इमारत या किसी भव्य स्मारक को देखते हैं, तो हमारे मन में एक अलग ही भावना आती है। यह सिर्फ़ उसकी बनावट नहीं होती, बल्कि उसके पीछे की कहानी और जिस तरह से उसे डिज़ाइन किया गया है, वह हमें भावनात्मक रूप से जोड़ता है। मेरे अनुभव से, कुछ जगहों पर मुझे इतनी प्रेरणा मिली है कि मेरे काम में एक नया जोश आ गया। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि डिज़ाइन में एक आत्मा होती है, जो हमें प्रभावित करती है। यह सिर्फ़ हमारी आँखों को ही नहीं, बल्कि हमारी आत्मा को भी छूती है। अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई लाइब्रेरी, म्यूज़ियम या आर्ट गैलरी हमें ज्ञान और कला के प्रति आकर्षित करती हैं। यह हमें सोचने पर मजबूर करती हैं, हमें सपने देखने की हिम्मत देती हैं।

कार्यक्षमता और रोज़मर्रा की सुविधाएँ

डिज़ाइन का सिर्फ़ सुंदर दिखना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि उसे उपयोगी भी होना चाहिए। सोचिए, अगर किसी मेट्रो स्टेशन का डिज़ाइन बहुत सुंदर हो, लेकिन वहाँ तक पहुँचने के लिए कोई रैंप न हो या लिफ्ट ठीक से काम न करती हो, तो क्या फायदा? मेरे हिसाब से, एक अच्छा डिज़ाइन वह है जो लोगों की ज़रूरतों को समझता है और उन्हें आसान बनाता है। चौड़ी सड़कें, पर्याप्त पार्किंग, सुविधाजनक सार्वजनिक परिवहन और पैदल चलने वालों के लिए सुरक्षित फुटपाथ, ये सब डिज़ाइन के वो पहलू हैं जो हमारे रोज़मर्रा के जीवन को सुगम बनाते हैं। जब इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाता है, तो हमारा जीवन आसान और कम तनावपूर्ण हो जाता है। यह सब डिज़ाइन की समझदारी का ही नतीजा है जो हमारे जीवन को इतना सुविधाजनक बनाता है।

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हरी-भरी जगहें और मानसिक शांति

हम सभी जानते हैं कि प्रकृति के करीब रहना हमें कितना सुकून देता है। शहरों की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में जब भी मौका मिलता है, हम हरे-भरे पार्कों या शांत झीलों के किनारे जाना पसंद करते हैं। मेरे दोस्तो, मैं अपने अनुभव से कहता हूँ कि प्रकृति का हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत गहरा और सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब मैं कभी बहुत तनाव में होता हूँ, तो बस कुछ देर किसी पार्क में बैठना, या पेड़-पौधों के बीच घूमना मुझे तुरंत बेहतर महसूस कराता है। यह सिर्फ़ हवा को शुद्ध नहीं करते, बल्कि हमारे दिमाग को भी शुद्ध करते हैं। आज की शहरीकरण की तेज़ रफ़्तार में, आर्किटेक्ट और शहरी योजनाकार इस बात पर बहुत ज़ोर दे रहे हैं कि कैसे हम अपनी इमारतों और सार्वजनिक स्थानों में हरियाली को ज़्यादा से ज़्यादा शामिल कर सकें। वर्टिकल गार्डन, रूफटॉप गार्डन, और हरे-भरे गलियारे (ग्रीन कॉरिडोर) अब सिर्फ़ लग्ज़री नहीं, बल्कि ज़रूरत बन गए हैं। मेरा मानना है कि एक शहर तभी पूरी तरह से ‘स्मार्ट’ हो सकता है जब वह अपने नागरिकों को प्रकृति के करीब रहने का मौका दे। इन हरी-भरी जगहों पर जाने से तनाव कम होता है, रचनात्मकता बढ़ती है और हम एक-दूसरे से ज़्यादा अच्छे से जुड़ पाते हैं। जब आप एक व्यस्त दिन के बाद किसी शांत बगीचे में बैठते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे आपने एक छोटा सा ब्रेक ले लिया हो और आप फिर से तरोताज़ा महसूस करते हैं। यह एक निवेश है जो हमें स्वस्थ और खुशहाल बनाता है।

तनाव कम करने का प्राकृतिक उपाय

आजकल की तेज़ी से भागती दुनिया में तनाव एक आम समस्या बन गया है। लेकिन, मुझे लगता है कि प्रकृति के पास हर समस्या का समाधान है। जब हम हरे-भरे माहौल में होते हैं, तो हमारा शरीर अपने आप रिलैक्स होने लगता है। शोधों से भी पता चला है कि पार्कों में समय बिताने से कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) का स्तर कम होता है और मूड बेहतर होता है। मुझे याद है जब मैं कॉलेज में था, परीक्षा के दिनों में मैं अक्सर अपने कॉलेज के छोटे से बगीचे में चला जाता था। बस पाँच-दस मिनट वहाँ बैठना ही मुझे फिर से पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता था। यह एक तरह का प्राकृतिक थेरेपी है, जो बिना किसी खर्च के हमें मिलता है।

स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा

हरी-भरी जगहें सिर्फ़ मानसिक शांति ही नहीं देतीं, बल्कि ये हमें एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए भी प्रेरित करती हैं। जब आपके घर के पास कोई सुंदर पार्क होता है, तो आपको टहलने, जॉगिंग करने या योग करने के लिए बाहर निकलने का मन करता है। ये जगहें बच्चों को खेलने और शारीरिक गतिविधि करने के लिए सुरक्षित स्थान प्रदान करती हैं। मेरे शहर में एक बहुत बड़ा पार्क है जहाँ हर सुबह और शाम सैकड़ों लोग आते हैं। वहाँ अलग-अलग उम्र के लोग एक्सरसाइज़ करते हैं, ग्रुप्स में बातें करते हैं, और यह देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। यह सिर्फ़ एक पार्क नहीं, बल्कि एक स्वस्थ समुदाय का प्रतीक है। हमें ऐसी और भी जगहों की ज़रूरत है ताकि हम सब एक एक्टिव और हेल्दी ज़िंदगी जी सकें।

सुरक्षित और समावेशी डिजाइन: सबकी भागीदारी

एक शहर तभी महान बनता है जब वह अपने हर नागरिक की ज़रूरतों को पूरा करे, चाहे वह किसी भी उम्र का हो, किसी भी क्षमता वाला हो। मेरे लिए, सुरक्षित और समावेशी डिज़ाइन का मतलब है ऐसी जगहें बनाना जहाँ हर कोई बिना किसी डर या असुविधा के रह सके और अपना योगदान दे सके। जब हम किसी सार्वजनिक स्थान या इमारत को डिज़ाइन करते हैं, तो हमें सिर्फ़ स्वस्थ और सक्षम लोगों के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए, बल्कि बच्चों, बुज़ुर्गों, विकलांग व्यक्तियों और गर्भवती महिलाओं जैसी विशेष ज़रूरतों वाले लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए। मुझे याद है एक बार मैं एक ऐसे पार्क में गया था जहाँ व्हीलचेयर पर बैठे लोगों के लिए कोई रैंप नहीं था, और यह देखकर मुझे बहुत बुरा लगा। यह दिखाता है कि डिज़ाइन में समावेशिता कितनी ज़रूरी है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी सड़कें, हमारे फुटपाथ, हमारे सार्वजनिक शौचालय, हमारे परिवहन सिस्टम और हमारी इमारतें सभी के लिए सुलभ हों। इसका मतलब है कि पर्याप्त रोशनी हो, आपातकालीन निकास स्पष्ट हों, साइनेज सभी भाषाओं में और आसानी से समझ में आने वाला हो, और सार्वजनिक परिवहन में विकलांगों के लिए भी सुविधाएँ हों। जब हम एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो हम न केवल उन लोगों की मदद करते हैं जिनकी विशेष ज़रूरतें हैं, बल्कि हम एक ज़्यादा दयालु, ज़्यादा समझदार और ज़्यादा एकजुट समाज का निर्माण करते हैं। यह सिर्फ़ नियमों का पालन करना नहीं है, यह एक मानवीय ज़िम्मेदारी है जिसे हमें निभाना चाहिए।

सभी के लिए सुलभता

सुलभता (Accessibility) का मतलब है कि हर कोई, चाहे उसकी शारीरिक क्षमता कुछ भी हो, किसी भी स्थान या सुविधा का उपयोग कर सके। इसमें व्हीलचेयर रैंप, ब्रेल लिफ्ट बटन, दृष्टिबाधित लोगों के लिए टेक्सचर्ड फ़्लोरिंग, और कम ऊंचाई वाले काउंटर जैसी चीज़ें शामिल हैं। मुझे लगता है कि यह सिर्फ़ एक विकल्प नहीं, बल्कि एक बुनियादी अधिकार है। जब हम इन सुविधाओं को डिज़ाइन का हिस्सा बनाते हैं, तो हम समाज के हर वर्ग को सम्मान देते हैं और उन्हें पूरी तरह से शहरी जीवन का हिस्सा बनने का मौका देते हैं। यह सिर्फ़ कुछ लोगों के लिए नहीं, बल्कि हम सभी के लिए एक बेहतर दुनिया बनाता है।

महिलाएँ और बच्चे: सुरक्षा की प्राथमिकता

सार्वजनिक स्थानों में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। मुझे लगता है कि रात के समय भी अच्छी रोशनी वाली सड़कें, सीसीटीवी कैमरे, और भीड़-भाड़ वाले सुरक्षित क्षेत्र डिज़ाइन का एक अनिवार्य हिस्सा होने चाहिए। बच्चों के खेलने के लिए सुरक्षित और अच्छी तरह से बनाए गए पार्क बहुत ज़रूरी हैं। हमें उन जगहों से बचना चाहिए जहाँ अंधेरे कोने हों या जहाँ से निकलने के लिए असुरक्षित रास्ते हों। मेरा मानना है कि जब महिलाएँ और बच्चे सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित महसूस करते हैं, तो पूरा समाज सशक्त होता है। यह सिर्फ़ क्राइम रोकने की बात नहीं है, बल्कि एक ऐसा माहौल बनाने की बात है जहाँ हर कोई खुलकर और निडर होकर जी सके।

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भविष्य के शहर: स्मार्ट और सस्टेनेबल आर्किटेक्चर

जब मैं ‘भविष्य के शहर’ के बारे में सोचता हूँ, तो मेरे दिमाग में सिर्फ़ ऊँची-ऊँची इमारतें नहीं आतीं, बल्कि ऐसे शहर आते हैं जो तकनीक और प्रकृति का एक अद्भुत मिश्रण हों, जहाँ रहने वाले हर व्यक्ति का जीवन बेहतर हो। मेरे दोस्तो, आज हम जिस तरह से इमारतों का निर्माण कर रहे हैं और अपने शहरों की योजना बना रहे हैं, वह सीधे तौर पर हमारे भविष्य पर असर डालेगा। इसलिए, स्मार्ट और सस्टेनेबल आर्किटेक्चर अब सिर्फ़ कॉन्सेप्ट नहीं रह गए हैं, बल्कि ये आज की ज़रूरत बन चुके हैं। स्मार्ट सिटीज़ का मतलब सिर्फ़ इंटरनेट और सेंसर से लैस शहर नहीं है, बल्कि ऐसे शहर हैं जो अपने संसाधनों का समझदारी से इस्तेमाल करें, प्रदूषण कम करें, ऊर्जा बचाएँ, और अपने निवासियों को एक उच्च गुणवत्ता वाला जीवन प्रदान करें। मैंने देखा है कि कैसे कुछ शहरों में सौर ऊर्जा का उपयोग करके इमारतें बनाई जा रही हैं, वर्षा जल संचयन (rainwater harvesting) प्रणालियाँ लगाई जा रही हैं और कचरा प्रबंधन को बेहद प्रभावी तरीके से किया जा रहा है। यह सिर्फ़ बिल्डिंगों को ‘ग्रीन’ बनाने की बात नहीं है, बल्कि एक पूरी जीवनशैली को बदलने की बात है। मेरा मानना है कि भविष्य में हम ऐसी इमारतों में रहेंगे जो अपने आप ऊर्जा पैदा करेंगी, पानी को रीसाइकल करेंगी, और पर्यावरण पर कम से कम नकारात्मक प्रभाव डालेंगी। यह सिर्फ़ पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि हमारी जेब के लिए भी अच्छा है क्योंकि इससे ऊर्जा और पानी का खर्च कम होता है। यह एक ऐसा रास्ता है जिस पर चलकर हम अपने ग्रह को बचा सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर दुनिया छोड़ सकते हैं।

विशेषता स्मार्ट सिटी सस्टेनेबल आर्किटेक्चर
मुख्य उद्देश्य तकनीक का उपयोग कर शहरी जीवन को बेहतर बनाना (दक्षता, सुविधा) पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव कम करना और संसाधनों का संरक्षण
प्रमुख तत्व IoT, डेटा एनालिटिक्स, स्मार्ट ग्रिड, कनेक्टेड डिवाइस ऊर्जा दक्षता, नवीकरणीय ऊर्जा, जल संचयन, हरी सामग्री
लाभ बेहतर परिवहन, सुरक्षित वातावरण, कुशल सेवाएँ कम ऊर्जा बिल, स्वस्थ इनडोर वातावरण, कार्बन फुटप्रिंट में कमी
उदाहरण स्मार्ट ट्रैफिक सिस्टम, ऑनलाइन नागरिक सेवाएँ सौर पैनल वाली इमारतें, वर्षा जल संचयन, प्राकृतिक वेंटिलेशन

ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा

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आजकल की इमारतों में बिजली और पानी का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल होता है। लेकिन, मुझे लगता है कि हम इस खपत को बहुत कम कर सकते हैं। नवीकरणीय ऊर्जा जैसे सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा का उपयोग करके हम अपनी इमारतों को आत्मनिर्भर बना सकते हैं। मैंने खुद देखा है कि कैसे एक छोटे से घर की छत पर लगे सोलर पैनल उसके पूरे बिजली बिल को खत्म कर सकते हैं। यह सिर्फ़ बड़े प्रोजेक्ट्स की बात नहीं है, बल्कि हर छोटे से छोटे घर में भी इसे लागू किया जा सकता है। सस्टेनेबल आर्किटेक्चर में ऐसी सामग्रियों का उपयोग किया जाता है जो पर्यावरण के लिए कम हानिकारक हों, और ऐसी डिज़ाइन तकनीकों का उपयोग किया जाता है जो प्राकृतिक रोशनी और हवा का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल करें, जिससे कृत्रिम हीटिंग और कूलिंग की ज़रूरत कम हो जाती है। यह न सिर्फ़ पर्यावरण को बचाता है, बल्कि लंबे समय में हमारे पैसे भी बचाता है।

हरित भवन निर्माण सामग्री

जब हम कोई इमारत बनाते हैं, तो उसके लिए बहुत सारी सामग्री की ज़रूरत पड़ती है, जैसे सीमेंट, स्टील, ईंटें वगैरह। मुझे लगता है कि हमें ऐसी सामग्री का उपयोग करना चाहिए जो पर्यावरण के लिए अनुकूल हो और जिसे रीसाइकल किया जा सके। आजकल बाज़ार में ऐसी बहुत सी हरित निर्माण सामग्री (ग्रीन बिल्डिंग मैटेरियल्स) उपलब्ध हैं, जैसे बाँस, रीसाइक्ल्ड कंक्रीट और मिट्टी से बनी ईंटें। इन सामग्रियों का उपयोग करके हम न केवल पर्यावरण पर पड़ने वाले बोझ को कम कर सकते हैं, बल्कि अपनी इमारतों को भी ज़्यादा स्वस्थ और सुरक्षित बना सकते हैं। यह सिर्फ़ एक ट्रेंड नहीं है, बल्कि भविष्य की ज़रूरत है। मुझे लगता है कि हमें इस दिशा में और ज़्यादा रिसर्च और इनोवेशन की ज़रूरत है ताकि हम सभी के लिए एक बेहतर और स्वस्थ वातावरण बना सकें।

कम्युनिटी बिल्डिंग: डिजाइन कैसे लोगों को जोड़ता है

दोस्तों, हम सब समाज में रहते हैं और एक-दूसरे के साथ जुड़ाव महसूस करना चाहते हैं। मुझे लगता है कि डिज़ाइन में यह शक्ति है कि वह लोगों को एक साथ ला सके, उन्हें एक समुदाय का हिस्सा महसूस करा सके। यह सिर्फ़ इमारतों को बनाने की बात नहीं है, यह उन जगहों को बनाने की बात है जहाँ रिश्ते बनते हैं, जहाँ साझा अनुभव होते हैं और जहाँ लोग एक-दूसरे का साथ देते हैं। मैंने अपने जीवन में कई ऐसे सार्वजनिक स्थान देखे हैं जहाँ डिज़ाइन ने लोगों को इतनी खूबसूरती से जोड़ा है कि वह जगह अपने आप में एक कम्युनिटी हब बन गई है। उदाहरण के लिए, एक सेंट्रल प्लाज़ा जहाँ अक्सर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, या एक कम्युनिटी गार्डन जहाँ लोग मिलकर सब्ज़ियाँ उगाते हैं। ऐसी जगहों पर लोग सिर्फ़ अपनी ज़रूरतों के लिए नहीं आते, बल्कि एक-दूसरे से मिलने, बातचीत करने और साझा गतिविधियों में भाग लेने के लिए आते हैं। जब एक डिज़ाइनर किसी स्थान की योजना बनाता है, तो उसे सिर्फ़ फ़ंक्शनैलिटी पर ही नहीं, बल्कि इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि वह जगह सामाजिक संपर्क को कैसे बढ़ावा देगी। बैठने के लिए पर्याप्त जगहें, बच्चों के लिए सुरक्षित खेल के मैदान, और कला प्रदर्शन के लिए खुले मंच, ये सब कम्युनिटी बिल्डिंग के महत्वपूर्ण तत्व हैं। मुझे लगता है कि जब हम ऐसी जगहें बनाते हैं, तो हम न केवल एक बेहतर शहर बनाते हैं, बल्कि हम एक ज़्यादा जीवंत और सहयोगी समाज का निर्माण भी करते हैं। यह एक ऐसा निवेश है जो हमें सामाजिक पूँजी के रूप में बहुत कुछ वापस देता है।

सांस्कृतिक मेलजोल के केंद्र

हर शहर की अपनी एक संस्कृति होती है, अपनी एक पहचान होती है। मुझे लगता है कि डिज़ाइन इन सांस्कृतिक पहचानों को उभारने और उन्हें सेलिब्रेट करने में मदद कर सकता है। जब हम सार्वजनिक स्थानों को इस तरह से डिज़ाइन करते हैं कि वे स्थानीय कला, शिल्प और परंपराओं को प्रदर्शित करें, तो वे अपने आप सांस्कृतिक मेलजोल के केंद्र बन जाते हैं। मैंने कई ऐसे शहरों में देखा है जहाँ के बाज़ार या चौक स्थानीय त्योहारों और कार्यक्रमों का मुख्य स्थल होते हैं। ये जगहें लोगों को अपनी संस्कृति पर गर्व महसूस कराती हैं और उन्हें एक-दूसरे के साथ अपनी परंपराओं को साझा करने का मौका देती हैं। यह सिर्फ़ पुराने रिवाज़ों को बनाए रखना नहीं है, बल्कि नए सांस्कृतिक अनुभवों को भी बनाना है।

सहयोग और साझा स्थान

डिज़ाइन हमें सहयोग करना भी सिखाता है। कल्पना कीजिए एक कम्युनिटी किचन की जहाँ अलग-अलग लोग मिलकर खाना बनाते हैं, या एक वर्कशॉप जहाँ लोग एक साथ स्किल्स सीखते हैं। ये साझा स्थान लोगों को एक-दूसरे के साथ काम करने और एक-दूसरे से सीखने का मौका देते हैं। मेरे अनुभव से, जब लोग एक साथ मिलकर कुछ बनाते हैं, तो उनके बीच एक मज़बूत रिश्ता बन जाता है। ये सिर्फ़ भौतिक स्थान नहीं होते, बल्कि ये ऐसे सामाजिक स्थान होते हैं जहाँ दोस्ती पनपती है और सहयोग की भावना बढ़ती है। जब हम ऐसी जगहें बनाते हैं जहाँ लोग आसानी से मिल सकें और एक-दूसरे के साथ बातचीत कर सकें, तो हम अपने आप एक ज़्यादा जुड़ा हुआ और सहायक समाज बनाते हैं।

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वास्तुकला की आत्मा: सिर्फ़ ईंट-पत्थर नहीं

हम अक्सर इमारतों को सिर्फ़ उनकी भौतिक संरचना के रूप में देखते हैं – ईंट, सीमेंट, स्टील और काँच। लेकिन मेरे दोस्तो, मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि वास्तुकला सिर्फ़ इन भौतिक चीज़ों का जोड़ नहीं है, बल्कि इसकी अपनी एक आत्मा होती है। यह उन मानवीय भावनाओं, कहानियों और अनुभवों का प्रतिबिंब है जो इन दीवारों के भीतर घटित होती हैं। एक अच्छा वास्तुकार सिर्फ़ एक इमारत नहीं बनाता, वह एक ऐसा अनुभव रचता है जो उस इमारत के भीतर रहने वाले या उससे गुज़रने वाले हर व्यक्ति को प्रभावित करता है। मुझे याद है एक बार मैं एक बहुत पुरानी हवेली देखने गया था। उसकी दीवारों, उसकी खिड़कियों और उसके आँगन में एक अलग ही कहानी छुपी हुई थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो दीवारें बोल रही हों, जैसे वो हमें अपने इतिहास से रूबरू करा रही हों। यही तो वास्तुकला की आत्मा है! यह सिर्फ़ आकार और सामग्री के बारे में नहीं है, यह रोशनी, छाया, ध्वनि और स्थान के बीच के रिश्ते के बारे में है। यह इस बात के बारे में है कि कैसे एक इमारत हमें महसूस कराती है, हमें कैसे सोचने पर मजबूर करती है और हमारे जीवन को कैसे समृद्ध करती है। मेरा मानना है कि हर इमारत का एक उद्देश्य होता है, एक कहानी होती है, और एक आत्मा होती है। जब हम इन चीज़ों को समझते हुए डिज़ाइन करते हैं, तभी हम कुछ ऐसा बना पाते हैं जो समय की कसौटी पर खरा उतरे और आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा दे। यह सिर्फ़ इंजीनियरिंग नहीं है, यह एक कला है जो मानवीय भावना को छूती है।

प्रकाश और स्थान का खेल

वास्तुकला में प्रकाश का उपयोग किसी जादू से कम नहीं है। प्राकृतिक रोशनी किसी भी स्थान को जीवंत कर देती है, उसे खुला और विशाल महसूस कराती है। वहीं, कृत्रिम रोशनी का सही उपयोग मूड को सेट कर सकता है और एक खास माहौल बना सकता है। मुझे लगता है कि एक कुशल वास्तुकार जानता है कि प्रकाश और छाया के साथ कैसे खेलना है ताकि एक जगह को आकर्षक बनाया जा सके। वहीं, स्थान का सही उपयोग भी उतना ही महत्वपूर्ण है। छोटे स्थानों को भी बड़ा महसूस कराया जा सकता है और बड़े स्थानों को भी अंतरंग बनाया जा सकता है, यह सब डिज़ाइन पर निर्भर करता है। यह सिर्फ़ खाली जगह भरने की बात नहीं है, बल्कि हर इंच का समझदारी से उपयोग करने की बात है ताकि वह जगह लोगों के लिए सबसे उपयोगी और सुखद हो।

सामग्री और बनावट की भाषा

हर सामग्री की अपनी एक कहानी होती है, अपनी एक बनावट होती है जो हमें एक अलग अनुभव देती है। लकड़ी की गर्माहट, पत्थर की मज़बूती, काँच की पारदर्शिता – ये सब वास्तुकला की भाषा के तत्व हैं। मुझे लगता है कि जब इन सामग्रियों का सही तरीके से उपयोग किया जाता है, तो वे एक इमारत को एक खास चरित्र और पहचान देती हैं। मैं एक बार एक ऐसी बिल्डिंग में गया था जहाँ की दीवारें कच्ची ईंटों की बनी थीं और उनकी बनावट इतनी खूबसूरत थी कि मुझे छूने का मन कर गया। यही तो है सामग्री की भाषा! यह सिर्फ़ बिल्डिंग को सुंदर नहीं बनाती, बल्कि उसे एक अलग ही एहसास देती है, जो उसे दूसरी इमारतों से अलग करता है। यह सब डिज़ाइनर की समझ और रचनात्मकता का ही परिणाम है जो इन निर्जीव सामग्रियों में जान भर देता है।

글을마치며

तो दोस्तों, आखिर में मैं यही कहना चाहूँगा कि हमारे शहर सिर्फ़ ईंटों और पत्थरों का ढेर नहीं हैं, बल्कि ये हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा हैं। इन सार्वजनिक स्थानों, वास्तुकला और डिज़ाइन में हम जो समय और ऊर्जा लगाते हैं, वह सिर्फ़ सुंदरता के लिए नहीं है, बल्कि हमारे सामाजिक ताने-बाने, हमारी खुशियों और हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी है। मुझे पूरी उम्मीद है कि इस पोस्ट को पढ़कर आप भी अपने आस-पास की जगहों को एक नई नज़र से देखेंगे और उनकी अहमियत को समझेंगे। याद रखिए, एक बेहतर शहर बनाने की शुरुआत हम सब मिलकर ही कर सकते हैं। आइए, हम सब मिलकर अपने शहरों को और ज़्यादा जीवंत, सुरक्षित और समावेशी बनाने की दिशा में काम करें, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इनमें खुलकर साँस ले सकें और अपनी कहानियाँ बुन सकें। यह सिर्फ़ भवनों का निर्माण नहीं, बल्कि भविष्य का निर्माण है।

알아두면 쓸모 있는 정보

  1. अपने शहर के छिपे हुए रत्नों को खोजें: अक्सर हम अपनी पसंदीदा जगहों पर ही जाते हैं, लेकिन कभी-कभी नए पार्कों, कम्युनिटी सेंटरों या छोटे बाज़ारों को एक्सप्लोर करें। आपको नए अनुभव मिलेंगे और शायद नए दोस्त भी।
  2. हरित पहलों का समर्थन करें: अगर आपके शहर में कोई ग्रीन प्रोजेक्ट या पेड़ लगाने का अभियान चल रहा है, तो उसमें हिस्सा लें। आप छोटे स्तर पर भी अपने घर के आस-पास पौधे लगाकर शुरुआत कर सकते हैं।
  3. सामुदायिक कार्यक्रमों में भाग लें: स्थानीय त्योहारों, प्रदर्शनियों या स्वच्छता अभियानों में शामिल हों। यह सिर्फ़ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समुदाय के लोगों से जुड़ने का एक शानदार तरीका है।
  4. बेहतर शहरी डिज़ाइन के लिए आवाज़ उठाएँ: अगर आपको लगता है कि आपके आस-पास कोई सार्वजनिक स्थान बेहतर बन सकता है या उसमें सुधार की गुंजाइश है, तो स्थानीय अधिकारियों या अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से संपर्क करें। आपकी आवाज़ मायने रखती है।
  5. अपने दैनिक जीवन में टिकाऊ प्रथाओं को अपनाएँ: पानी बचाएँ, बिजली का कम इस्तेमाल करें, और कचरा कम करें। यह छोटे-छोटे कदम मिलकर एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं और हमारे शहरों को और टिकाऊ बना सकते हैं।

중요 사항 정리

इस पूरी बातचीत से हमने सीखा कि शहरों का दिल उसके सार्वजनिक स्थानों में धड़कता है। एक अच्छा डिज़ाइन सिर्फ़ देखने में सुंदर नहीं होता, बल्कि वह हमारी भावनाओं और कार्यक्षमता पर गहरा असर डालता है। हरी-भरी जगहें हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए अमृत समान हैं, और समावेशी डिज़ाइन यह सुनिश्चित करता है कि हर कोई, बिना किसी बाधा के, शहरी जीवन का हिस्सा बन सके। भविष्य के शहर स्मार्ट और टिकाऊ वास्तुकला पर आधारित होंगे, जो तकनीक और प्रकृति को एक साथ लाएँगे। अंत में, यह सब डिज़ाइन ही है जो लोगों को एक साथ लाता है, रिश्तों को मज़बूत करता है और एक जीवंत समुदाय का निर्माण करता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वास्तुकला में सिर्फ़ ईंट-पत्थर नहीं होते, बल्कि उसकी अपनी एक आत्मा होती है जो हमें प्रेरित करती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) 📖

प्र: आजकल के शहरों में हम देखते हैं कि सब कुछ बहुत तेज़ी से बदल रहा है। इस माहौल में ‘मानव-केंद्रित डिज़ाइन’ क्या है और यह हमारे लिए क्यों इतना ज़रूरी है?

उ: अरे वाह! यह तो बिल्कुल सही सवाल है और मुझे लगता है कि आज के समय में इसकी चर्चा होना बहुत ज़रूरी है। देखिए, जब हम ‘मानव-केंद्रित डिज़ाइन’ (Human-Centric Design) की बात करते हैं, तो इसका सीधा सा मतलब है कि इमारतें या शहर की प्लानिंग सिर्फ़ ईंट-पत्थर और कंक्रीट के हिसाब से नहीं, बल्कि इंसानों की ज़रूरतों, उनकी भावनाओं और उनके आराम को ध्यान में रखकर की जाए। सोचिए ना, जब आप किसी ऐसी जगह जाते हैं जहाँ खुली हवा हो, बैठने के लिए बेंच हों, हरियाली हो और सब कुछ आपकी पहुँच में हो, तो कैसा महसूस होता है?
मुझे तो लगता है कि जैसे सारी थकान ही उतर जाती है! (Source: 10) पहले अक्सर होता था कि आर्किटेक्ट और प्लानर सिर्फ़ जगह भरने या सुंदर दिखने वाली इमारतें बनाने पर ज़ोर देते थे, लेकिन अब वे समझ रहे हैं कि डिज़ाइन का असली मक़सद लोगों की ज़िंदगी को बेहतर बनाना है। (Source: 10, 14, 18) इसमें सिर्फ़ सड़कें और बिल्डिंगें ही नहीं आतीं, बल्कि ऐसे पार्क, बाज़ार या सार्वजनिक स्थान भी आते हैं जहाँ लोग आराम से मिल-जुल सकें, बच्चों के खेलने की जगह हो, और बुजुर्ग भी सुरक्षित महसूस करें। (Source: 10) मैंने अपने अनुभव से देखा है कि जहाँ भी इस तरह के डिज़ाइन पर काम हुआ है, वहाँ लोगों में अपनापन बढ़ा है और वे उस जगह को ज़्यादा पसंद करते हैं। यह सिर्फ़ सौंदर्य की बात नहीं है, यह हमारे स्वास्थ्य, खुशी और समाज के ताने-बाने को मजबूत करने की बात है।

प्र: सार्वजनिक स्थान डिज़ाइन (Public Space Design) हमारे समुदाय और व्यक्तिगत जीवन को कैसे प्रभावित करता है? मुझे लगता है कि ये सिर्फ़ खाली जगहें होती हैं, क्या आप बता सकते हैं कि ये इतनी ख़ास क्यों हैं?

उ: यह एक आम ग़लतफ़हमी है दोस्त, कि सार्वजनिक स्थान बस खाली जगहें होती हैं। सच कहूँ तो, मेरे हिसाब से ये किसी भी शहर की जान होते हैं! सोचिए, अगर किसी शहर में कोई पार्क न हो, कोई चौपाल न हो, या कोई ऐसी जगह न हो जहाँ लोग बिना कुछ ख़रीदे बस बैठ सकें, तो वह शहर कितना नीरस लगेगा?
(Source: 10) मुझे याद है, एक बार मैं एक छोटे से गाँव गया था जहाँ बीच में एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था और उसके चारों ओर एक चबूतरा बना था। शाम को वहाँ पूरा गाँव इकट्ठा होता था, बच्चे खेलते थे, बड़े बातें करते थे – वह जगह अपने आप में एक समुदाय का केंद्र थी। (Source: 10) यही काम हमारे शहरों में सार्वजनिक स्थान करते हैं, जैसे पार्क, प्लाज़ा, नदियाँ या झील के किनारे बने रास्ते। (Source: 10) ये हमें प्रकृति से जोड़ते हैं, रोज़मर्रा की भागदौड़ से राहत देते हैं, और सबसे बढ़कर, लोगों को आपस में जुड़ने का मौका देते हैं। (Source: 10) जब मैं किसी नए शहर में जाता हूँ, तो सबसे पहले वहाँ के पार्कों और सार्वजनिक चौराहों को देखता हूँ। (Source: 10) मुझे लगता है कि एक अच्छी तरह से डिज़ाइन किया गया सार्वजनिक स्थान लोगों को सुरक्षित महसूस कराता है, उन्हें बाहर निकलने के लिए प्रेरित करता है और उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छा होता है। (Source: 10, 18) ये वो जगहें हैं जहाँ दोस्त मिलते हैं, परिवार समय बिताते हैं, और कई बार तो नए आइडियाज़ भी पनपते हैं। इसलिए, इन्हें सिर्फ़ खाली जगह समझना सरासर गलत होगा; ये तो हमारे रिश्तों और हमारी संस्कृति को पोषित करने वाली खाद हैं!

प्र: भविष्य में वास्तुकला और शहरी योजना में क्या नए ट्रेंड्स देखने को मिलेंगे, खासकर भारत जैसे देश में जहाँ आबादी इतनी तेज़ी से बढ़ रही है?

उ: वाह! यह तो भविष्य की बात है, और मुझे हमेशा भविष्य के बारे में सोचना बड़ा रोमांचक लगता है! (Source: 10) मुझे लगता है कि भारत जैसे देश में, जहाँ आबादी लगातार बढ़ रही है और शहरीकरण बहुत तेज़ी से हो रहा है, वास्तुकला और शहरी योजना में कई बड़े और दिलचस्प बदलाव आने वाले हैं। (Source: 10) सबसे पहले तो, स्मार्ट सिटीज़ (Smart Cities) का कॉन्सेप्ट और ज़्यादा मज़बूत होगा। (Source: 4, 6, 8) इसका मतलब है कि तकनीक का इस्तेमाल करके शहरों को और ज़्यादा कुशल, सुरक्षित और रहने लायक बनाया जाएगा – जैसे स्मार्ट लाइटिंग, स्मार्ट ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम और बेहतर वेस्ट मैनेजमेंट। (Source: 4, 6, 8) मैंने कई प्रोजेक्ट्स में देखा है कि कैसे अब आर्किटेक्ट्स सिर्फ़ बिल्डिंग की ऊँचाई पर नहीं, बल्कि उसकी सस्टेनेबिलिटी (Sustainability) पर भी ज़ोर दे रहे हैं। (Source: 13, 14) पर्यावरण-अनुकूल इमारतें (Eco-Friendly Buildings) और हरी-भरी जगहें बनाना अब सिर्फ़ एक विकल्प नहीं, बल्कि ज़रूरत बन गई है। (Source: 13, 14) हम देखेंगे कि ज़्यादा से ज़्यादा बिल्डिंगें सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगी, बारिश के पानी को सहेजेंगी और उनमें ज़्यादा प्राकृतिक रौशनी और हवा का इंतज़ाम होगा। (Source: 13) इसके अलावा, मुझे लगता है कि सामुदायिक स्थानों का महत्व और बढ़ेगा। (Source: 10) लोग ऐसी जगहें चाहेंगे जहाँ वे सिर्फ़ काम ही न करें, बल्कि समुदाय के रूप में एक साथ समय भी बिता सकें। (Source: 10) कोविड महामारी के बाद, हमने घर से काम करने का चलन देखा है, तो हो सकता है कि अब हमारे घर और पड़ोस भी इस तरह से डिज़ाइन हों जो काम और जीवन के बीच बेहतर संतुलन बना सकें। (Source: 10) यह सिर्फ़ बिल्डिंगें बनाना नहीं है, बल्कि भविष्य की ज़रूरतों को समझते हुए एक ऐसा वातावरण बनाना है जहाँ लोग खुशहाल और स्वस्थ जीवन जी सकें। मैं तो इस बदलाव को देखने के लिए बहुत उत्साहित हूँ!

📚 संदर्भ

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